वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 3: अरण्य काण्ड
»
सर्ग 47: सीता का रावण को अपना और पति का परिचय देकर वन में आने का कारण बताना, रावण का उन्हें अपनी पटरानी बनाने की इच्छा प्रकट करना और सीता का उसे फटकारना
»
श्लोक 37
श्लोक
3.47.37
त्वं पुनर्जम्बुक: सिंहीं मामिहेच्छसि दुर्लभाम्।
नाहं शक्या त्वया स्प्रष्टुमादित्यस्य प्रभा यथा॥ ३७॥
अनुवाद
play_arrowpause
पापी रात में चलने वाले जीव! तू तो एक गीदड़ है और मैं एक शेरनी हूँ। तेरे लिये मैं सर्वथा दुर्लभ हूँ। क्या तू यहाँ मुझे प्राप्त करने की इच्छा रखता है? अरे! जैसे सूर्य की प्रभा को कोई छू नहीं सकता, उसी प्रकार तू मुझे कभी भी छू नहीं पायेगा।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.