श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 47: सीता का रावण को अपना और पति का परिचय देकर वन में आने का कारण बताना, रावण का उन्हें अपनी पटरानी बनाने की इच्छा प्रकट करना और सीता का उसे फटकारना  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  3.47.36 
 
 
पूर्णचन्द्राननं रामं राजवत्सं जितेन्द्रियम्।
पृथुकीर्तिं महाबाहुमहं राममनुव्रता॥ ३६॥
 
 
अनुवाद
 
  पूर्णचंद्र के समान मनोहर मुख वाले, राजकुमार श्रीराम जितेन्द्रिय हैं और उनकी कीर्ति महान है। महाबाहु श्रीराम में ही मेरा मन दृढ़तापूर्वक लगा हुआ है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.