श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 47: सीता का रावण को अपना और पति का परिचय देकर वन में आने का कारण बताना, रावण का उन्हें अपनी पटरानी बनाने की इच्छा प्रकट करना और सीता का उसे फटकारना  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  3.47.32 
 
 
रावणेनैवमुक्ता तु कुपिता जनकात्मजा।
प्रत्युवाचानवद्याङ्गी तमनादृत्य राक्षसम्॥ ३२॥
 
 
अनुवाद
 
  रावण के मुख से ऐसे कटु वचन सुनकर निर्दोष अंग-प्रत्यंग वाली सीता अत्यंत क्रोधित हुई और उन्होंने उस राक्षस का तिरस्कार करते हुए इस प्रकार कहा-
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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