श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 47: सीता का रावण को अपना और पति का परिचय देकर वन में आने का कारण बताना, रावण का उन्हें अपनी पटरानी बनाने की इच्छा प्रकट करना और सीता का उसे फटकारना  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  3.47.30 
 
 
तत्र सीते मया सार्धं वनेषु विचरिष्यसि।
न चास्य वनवासस्य स्पृहयिष्यसि भामिनि॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
 
  सीते! तुम मेरे संग उस वन में रहकर नाना प्रकार के जंगलों में विचरण करोगी। हे सुंदरी! तब तुम्हारे मन में इस वनवास की इच्छा कभी नहीं होगी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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