श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 47: सीता का रावण को अपना और पति का परिचय देकर वन में आने का कारण बताना, रावण का उन्हें अपनी पटरानी बनाने की इच्छा प्रकट करना और सीता का उसे फटकारना  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  3.47.27 
 
 
त्वां तु काञ्चनवर्णाभां दृष्ट्वा कौशेयवासिनीम्।
रतिं स्वकेषु दारेषु नाधिगच्छाम्यनिन्दिते॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  अनिन्द्य सुंदरि! तुम्हारे सुंदर अंगों पर शोभायमान रेशमी साड़ी सोने सी चमक रही है। तुम्हें देखकर मेरा मन अब मेरी अपनी पत्नियों की ओर भी नहीं जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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