श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 47: सीता का रावण को अपना और पति का परिचय देकर वन में आने का कारण बताना, रावण का उन्हें अपनी पटरानी बनाने की इच्छा प्रकट करना और सीता का उसे फटकारना  »  श्लोक 17-18h
 
 
श्लोक  3.47.17-18h 
 
 
दद्यान्न प्रतिगृह्णीयात् सत्यं ब्रूयान्न चानृतम्॥ १७॥
एतद् ब्राह्मण रामस्य व्रतं धृतमनुत्तमम्।
 
 
अनुवाद
 
  श्रीराम सदैव देने वाले हैं, लेने वाले नहीं। वो हमेशा ही सत्य बोलते हैं, कभी झूठ नहीं बोलते। ब्राह्मण! श्रीरामचंद्रजी ने यही सर्वोत्तम व्रत धारण किया है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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