श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 47: सीता का रावण को अपना और पति का परिचय देकर वन में आने का कारण बताना, रावण का उन्हें अपनी पटरानी बनाने की इच्छा प्रकट करना और सीता का उसे फटकारना  »  श्लोक 14-16h
 
 
श्लोक  3.47.14-16h 
 
 
तव पित्रा समाज्ञप्तं ममेदं शृणु राघव॥ १४॥
भरताय प्रदातव्यमिदं राज्यमकण्टकम्।
त्वया तु खलु वस्तव्यं नव वर्षाणि पञ्च च॥ १५॥
वने प्रव्रज काकुत्स्थ पितरं मोचयानृतात् ।
 
 
अनुवाद
 
  रघुनन्दन! जैसा कि तुम्हारे पिता ने आज्ञा दी है, वह मेरे मुँह से सुनो। यह निष्कण्टक राज्य भरत को दिया जाएगा, तुम्हें तो चौदह वर्षों तक वन में ही रहना होगा। हे काकुत्स्थ! तुम वन में जाओ और अपने पिता को असत्य के बंधन से मुक्त कराओ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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