श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 46: रावण का साधुवेष में सीता के पास जाकर उनका परिचय पूछना और सीता का आतिथ्य के लिये उसे आमन्त्रित करना  »  श्लोक 9-10h
 
 
श्लोक  3.46.9-10h 
 
 
अभव्यो भव्यरूपेण भर्तारमनुशोचतीम्॥ ९॥
अभ्यवर्तत वैदेहीं चित्रामिव शनैश्चर:।
 
 
अनुवाद
 
  उस समय विदेहराज की पुत्री सीता अपने पति श्री राम के लिए शोक और चिंता में डूबी हुई थीं। तभी अभव्य रावण भव्य रूप धारण करके उनके सामने प्रकट हुआ, मानो शनैश्चर ग्रह चित्रा नक्षत्र के सामने जा पहुँचा हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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