श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 46: रावण का साधुवेष में सीता के पास जाकर उनका परिचय पूछना और सीता का आतिथ्य के लिये उसे आमन्त्रित करना  »  श्लोक 6-8h
 
 
श्लोक  3.46.6-8h 
 
 
तमुग्रं पापकर्माणं जनस्थानगता द्रुमा:॥ ६॥
संदृश्य न प्रकम्पन्ते न प्रवाति च मारुत:।
शीघ्रस्रोताश्च तं दृष्ट्वा वीक्षन्तं रक्तलोचनम्॥ ७॥
स्तिमितं गन्तुमारेभे भयाद् गोदावरी नदी।
 
 
अनुवाद
 
  देखते ही देखते भयंकर पापी रावण जनस्थान में प्रवेश करता है तो उस स्थान के वृक्ष हिलना बंद कर देते हैं और हवा का वेग भी थम जाता है। रावण की लाल आँखें जब उस ओर देखती हैं तो तेज गति से बहने वाली गोदावरी नदी भी डर के मारे धीरे-धीरे बहने लगती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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