श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 46: रावण का साधुवेष में सीता के पास जाकर उनका परिचय पूछना और सीता का आतिथ्य के लिये उसे आमन्त्रित करना  »  श्लोक 38
 
 
श्लोक  3.46.38 
 
 
तत: सुवेषं मृगयागतं पतिं
प्रतीक्षमाणा सहलक्ष्मणं तदा।
निरीक्षमाणा हरितं ददर्श त-
न्महद् वनं नैव तु रामलक्ष्मणौ॥ ३८॥
 
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात् सुंदर वस्त्र पहने हुए सीताजी ने मृगया खेलने गए अपने पति श्रीरामचंद्रजी और लक्ष्मण जी का इंतज़ार करना शुरू कर दिया। उन्होंने चारों ओर नज़र दौड़ाई, परन्तु उन्हें हर तरफ़ हरा-भरा विशाल जंगल ही दिखाई दिया और श्रीराम और लक्ष्मण नहीं दिखे।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे षट्चत्वारिंश: सर्ग:॥ ४६॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें छियालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ४६॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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