श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 46: रावण का साधुवेष में सीता के पास जाकर उनका परिचय पूछना और सीता का आतिथ्य के लिये उसे आमन्त्रित करना  »  श्लोक 32-33
 
 
श्लोक  3.46.32-33 
 
 
इति प्रशस्ता वैदेही रावणेन महात्मना॥ ३२॥
द्विजातिवेषेण हि तं दृष्ट्वा रावणमागतम्।
सर्वैरतिथिसत्कारै: पूजयामास मैथिली॥ ३३॥
 
 
अनुवाद
 
  रावण महात्मा ने वेशभूषा से ब्राह्मण का रूप धारण करके जब विदेह कुमारी सीता की इस प्रकार प्रशंसा की, तब ब्राह्मण वेश में वहाँ पधारे हुए रावण को देखकर मैथिली ने अतिथि-सत्कार के लिये उपयुक्त सभी सामग्रियों से उसका पूजन किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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