वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 3: अरण्य काण्ड
»
सर्ग 46: रावण का साधुवेष में सीता के पास जाकर उनका परिचय पूछना और सीता का आतिथ्य के लिये उसे आमन्त्रित करना
»
श्लोक 31-32h
श्लोक
3.46.31-32h
कासि कस्य कुतश्च त्वं किं निमित्तं च दण्डकान्॥ ३१॥
एका चरसि कल्याणि घोरान् राक्षससेवितान्।
अनुवाद
play_arrowpause
कल्याणमयी देवी! तुम कौन हो? तुम किसकी हो? तुम कहाँ से आई हो? और किस कारण से इस घोर दण्डकारण्य में, जहाँ राक्षस निवास करते हैं, अकेली विचरण कर रही हो?
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.