श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 46: रावण का साधुवेष में सीता के पास जाकर उनका परिचय पूछना और सीता का आतिथ्य के लिये उसे आमन्त्रित करना  »  श्लोक 27-28h
 
 
श्लोक  3.46.27-28h 
 
 
का त्वं भवसि रुद्राणां मरुतां वा शुचिस्मिते॥ २७॥
वसूनां वा वरारोहे देवता प्रतिभासि मे।
 
 
अनुवाद
 
  देवि! तुम कौन हो? तुम्हारी पवित्र मुस्कान और सुंदर अंग हैं। तुम रुद्रों, मरुद्गणों या वसुओं से संबंधित देवी लगती हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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