श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 46: रावण का साधुवेष में सीता के पास जाकर उनका परिचय पूछना और सीता का आतिथ्य के लिये उसे आमन्त्रित करना  »  श्लोक 23-24
 
 
श्लोक  3.46.23-24 
 
 
नैवंरूपा मया नारी दृष्टपूर्वा महीतले।
रूपमग्रॺं च लोकेषु सौकुमार्यं वयश्च ते॥ २३॥
इह वासश्च कान्तारे चित्तमुन्माथयन्ति मे।
सा प्रतिक्राम भद्रं ते न त्वं वस्तुमिहार्हसि॥ २४॥
 
 
अनुवाद
 
  पृथ्वी पर तो ऐसी सुंदर स्त्री मैंने पहले कभी नहीं देखी। एक ओर तुम्हारा यह तीनों लोकों में सबसे सुंदर रूप, कोमलता और नई अवस्था है और दूसरी ओर इस निर्जन वन में तुम्हारा निवास! ये सारी बातें ध्यान में आते ही मेरे मन को परेशान कर देती हैं। तुम्हारा कल्याण हो। यहाँ से चली जाओ। तुम यहाँ रहने के योग्य नहीं हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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