श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 46: रावण का साधुवेष में सीता के पास जाकर उनका परिचय पूछना और सीता का आतिथ्य के लिये उसे आमन्त्रित करना  »  श्लोक 18-19h
 
 
श्लोक  3.46.18-19h 
 
 
समा: शिखरिण: स्निग्धा: पाण्डुरा दशनास्तव।
विशाले विमले नेत्रे रक्तान्ते कृष्णतारके॥ १८॥
विशालं जघनं पीनमूरू करिकरोपमौ।
 
 
अनुवाद
 
  तुम्हारे दाँत पंक्ति में बिल्कुल बराबर हैं। उनके आगे के भाग कुंद की कलियों के समान शोभा पाते हैं। वे सभी चिकने, चमकदार और सफेद हैं। तुम्हारी दोनों आँखें बड़ी-बड़ी और बहुत ही साफ एवं स्वच्छ हैं। उनके दोनों कोने लाल हैं और पुतलियाँ काली हैं। तुम्हारा कमर का पिछला भाग चौड़ा और मांसल है। दोनों जांघें हाथी की सूंड के समान शोभा पाती हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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