श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 46: रावण का साधुवेष में सीता के पास जाकर उनका परिचय पूछना और सीता का आतिथ्य के लिये उसे आमन्त्रित करना  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  3.46.17 
 
 
ह्री: श्री: कीर्ति: शुभा लक्ष्मीरप्सरा वा शुभानने।
भूतिर्वा त्वं वरारोहे रतिर्वा स्वैरचारिणी॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  हे सुन्दर मुख वाली! क्या तुम श्री, ह्री, कीर्ति, शुभस्वरूपा लक्ष्मी या अप्सरा हो? या हे कमल पर विराजमान! क्या तुम भूति हो या स्वेच्छा से विहार करने वाली कामदेव की पत्नी रति हो?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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