श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 46: रावण का साधुवेष में सीता के पास जाकर उनका परिचय पूछना और सीता का आतिथ्य के लिये उसे आमन्त्रित करना  »  श्लोक 11-12
 
 
श्लोक  3.46.11-12 
 
 
तिष्ठन् सम्प्रेक्ष्य च तदा पत्नीं रामस्य रावण:॥ ११॥
शुभां रुचिरदन्तोष्ठीं पूर्णचन्द्रनिभाननाम्।
आसीनां पर्णशालायां बाष्पशोकाभिपीडिताम्॥ १२॥
 
 
अनुवाद
 
  उस समय रावण स्त्री के कपड़े पहनकर वहीं खड़ा-खड़ा सीता माता को देखने लगा। सीता जी बहुत सुंदर थीं। उनके होंठ और दांत भी सुंदर थे, उनका मुख पूर्ण चन्द्रमा की शोभा को भी मात कर देता था। वो पर्णशाला में गहरे दुःख में बैठी थी और आंसू बहा रही थीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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