श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 46: रावण का साधुवेष में सीता के पास जाकर उनका परिचय पूछना और सीता का आतिथ्य के लिये उसे आमन्त्रित करना  »  श्लोक 10-11h
 
 
श्लोक  3.46.10-11h 
 
 
सहसा भव्यरूपेण तृणै: कूप इवावृत:॥ १०॥
अतिष्ठत् प्रेक्ष्य वैदेहीं रामपत्नीं यशस्विनीम्।
 
 
अनुवाद
 
  जैसे घास-फूस से किसी कुएं का मुंह ढका होता है, उसी प्रकार रावण ने अपनी विकरालता को सुंदरता से छिपाकर वहाँ पहुँचकर, यशस्वी रामपत्नी वैदेही को देखा और रुक गया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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