श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 46: रावण का साधुवेष में सीता के पास जाकर उनका परिचय पूछना और सीता का आतिथ्य के लिये उसे आमन्त्रित करना  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  3.46.1 
 
 
तया परुषमुक्तस्तु कुपितो राघवानुज:।
स विकांक्षन् भृशं रामं प्रतस्थे नचिरादिव॥ १॥
 
 
अनुवाद
 
  लक्ष्मण सीता की कटु वचनों से क्रोधित हो गए और श्री राम से मिलने की तीव्र इच्छा रखते हुए वे वहाँ से शीघ्र ही चल पड़े।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.