वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 3: अरण्य काण्ड
»
सर्ग 46: रावण का साधुवेष में सीता के पास जाकर उनका परिचय पूछना और सीता का आतिथ्य के लिये उसे आमन्त्रित करना
»
श्लोक 1
श्लोक
3.46.1
तया परुषमुक्तस्तु कुपितो राघवानुज:।
स विकांक्षन् भृशं रामं प्रतस्थे नचिरादिव॥ १॥
अनुवाद
play_arrowpause
लक्ष्मण सीता की कटु वचनों से क्रोधित हो गए और श्री राम से मिलने की तीव्र इच्छा रखते हुए वे वहाँ से शीघ्र ही चल पड़े।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.