श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 45: सीता के मार्मिक वचनों से प्रेरित होकर लक्ष्मण का श्रीराम के पास जाना  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  3.45.40 
 
 
ततस्तु सीतामभिवाद्य लक्ष्मण:
कृताञ्जलि: किंचिदभिप्रणम्य।
अवेक्षमाणो बहुश: स मैथिलीं
जगाम रामस्य समीपमात्मवान्॥ ४०॥
 
 
अनुवाद
 
  तब मन को वश में रखने वाले लक्ष्मण ने दोनों हाथ जोड़कर और कुछ झुककर मिथिलेशकुमारी सीता को प्रणाम किया। उसके बाद वे बार-बार सीता की ओर देखते हुए श्रीरामचन्द्र जी के पास चले गए।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे पञ्चचत्वारिंश: सर्ग:॥ ४५॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें पैंतालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ४५॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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