तब मन को वश में रखने वाले लक्ष्मण ने दोनों हाथ जोड़कर और कुछ झुककर मिथिलेशकुमारी सीता को प्रणाम किया। उसके बाद वे बार-बार सीता की ओर देखते हुए श्रीरामचन्द्र जी के पास चले गए।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे पञ्चचत्वारिंश: सर्ग:॥ ४५॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें पैंतालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ४५॥