श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 45: सीता के मार्मिक वचनों से प्रेरित होकर लक्ष्मण का श्रीराम के पास जाना  »  श्लोक 36-37
 
 
श्लोक  3.45.36-37 
 
 
गोदावरीं प्रवेक्ष्यामि हीना रामेण लक्ष्मण।
आबन्धिष्येऽथवा त्यक्ष्ये विषमे देहमात्मन:॥ ३६॥
पिबामि वा विषं तीक्ष्णं प्रवेक्ष्यामि हुताशनम्।
न त्वहं राघवादन्यं कदापि पुरुषं स्पृशे॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
 
  "लक्ष्मण! यदि मैं श्री राम से बिछुड़ जाती हूँ, तो मैं गोदावरी नदी में डूब जाऊँगी या अपने गले में फंदा डाल लूँगी अथवा किसी ऊँचे पर्वत पर चढ़कर वहाँ से अपने शरीर को नीचे गिरा दूँगी या फिर तीव्र विष पी लूँगी या जलती हुई आग में प्रवेश कर जाऊँगी, परंतु श्री रघुनाथ जी के अलावा किसी भी दूसरे पुरुष को मैं कभी नहीं छूऊँगी।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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