श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 45: सीता के मार्मिक वचनों से प्रेरित होकर लक्ष्मण का श्रीराम के पास जाना  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  3.45.34 
 
 
रक्षन्तु त्वां विशालाक्षि समग्रा वनदेवता:।
निमित्तानि हि घोराणि यानि प्रादुर्भवन्ति मे।
अपि त्वां सह रामेण पश्येयं पुनरागत:॥ ३४॥
 
 
अनुवाद
 
  "विशालाक्षि! वन के सभी देवता आपकी रक्षा करें। मेरे सामने दिखाई देने वाले ये भयावह अपशकुन मुझे चिंतित कर रहे हैं। क्या मैं श्री रामचंद्र जी के साथ लौटकर आपको फिर से सकुशल देख पाऊंगा?"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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