श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 45: सीता के मार्मिक वचनों से प्रेरित होकर लक्ष्मण का श्रीराम के पास जाना  »  श्लोक 30-31h
 
 
श्लोक  3.45.30-31h 
 
 
विमुक्तधर्माश्चपलास्तीक्ष्णा भेदकरा: स्त्रिय:।
न सहे हीदृशं वाक्यं वैदेहि जनकात्मजे॥ ३०॥
श्रोत्रयोरुभयोर्मध्ये तप्तनाराचसंनिभम्।
 
 
अनुवाद
 
  स्त्रियाँ प्रायः मृदुभाषिणी, विनीत एवं घर में शांति बनाए रखने वाली होती हैं। विदेह कुमारी जानकी! आपकी यह बात मेरे दोनों कानों में अमृत के समान लगी है। मैं इस बात को सह सकता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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