श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 45: सीता के मार्मिक वचनों से प्रेरित होकर लक्ष्मण का श्रीराम के पास जाना  »  श्लोक 27-28
 
 
श्लोक  3.45.27-28 
 
 
इत्युक्त: परुषं वाक्यं सीतया रोमहर्षणम्॥ २७॥
अब्रवील्लक्ष्मण: सीतां प्राञ्जलि: स जितेन्द्रिय:।
उत्तरं नोत्सहे वक्तुं दैवतं भवती मम॥ २८॥
 
 
अनुवाद
 
  सीताजी के उस कड़वे और रोंगटे खड़े कर देने वाले वचन को सुनकर, इंद्रिय संयमी लक्ष्मण ने हाथ जोड़कर उनसे कहा—‘देवी! मैं आपके इस वचन का उत्तर नहीं दे सकता; क्योंकि आप मेरे लिए पूजनीय देवी समान हैं॥ २७-२८॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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