श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 45: सीता के मार्मिक वचनों से प्रेरित होकर लक्ष्मण का श्रीराम के पास जाना  »  श्लोक 25-26h
 
 
श्लोक  3.45.25-26h 
 
 
तन्न सिध्यति सौमित्रे तवापि भरतस्य वा।
कथमिन्दीवरश्यामं रामं पद्मनिभेक्षणम्॥ २५॥
उपसंश्रित्य भर्तारं कामयेयं पृथग्जनम्।
 
 
अनुवाद
 
  परंतु सुमित्रा पुत्र! तेरा या भरत का वह मनोरथ सिद्ध नहीं हो सकता। नीलकमल के समान श्यामसुन्दर कमलनयन श्रीराम को पतिरूप में पाकर मैं दूसरे किसी क्षुद्र पुरुष की कामना कैसे कर सकती हूँ?।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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