श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 45: सीता के मार्मिक वचनों से प्रेरित होकर लक्ष्मण का श्रीराम के पास जाना  »  श्लोक 21-22
 
 
श्लोक  3.45.21-22 
 
 
अनार्याकरुणारम्भ नृशंस कुलपांसन॥ २१॥
अहं तव प्रियं मन्ये रामस्य व्यसनं महत्।
रामस्य व्यसनं दृष्ट्वा तेनैतानि प्रभाषसे॥ २२॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘अनार्य! निर्दयी! क्रूरकर्मा! कुलाङ्गार! मैं तुझे खूब समझती हूँ। श्रीराम किसी भारी विपत्तिमें पड़ जायँ, यही तुझे प्रिय है। इसीलिये तू रामपर संकट आया देखकर भी ऐसी बातें बना रहा है॥ २१-२२॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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