श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 45: सीता के मार्मिक वचनों से प्रेरित होकर लक्ष्मण का श्रीराम के पास जाना  »  श्लोक 19-20h
 
 
श्लोक  3.45.19-20h 
 
 
राक्षसा विविधा वाचो व्याहरन्ति महावने॥ १९॥
हिंसाविहारा वैदेहि न चिन्तयितुमर्हसि।
 
 
अनुवाद
 
  विदेहनन्दिनि! जिस राक्षस की यह नाना प्रकार की बोलियाँ हैं, वे इस विशाल वन में विचरण करते हैं, वे हिंसा को ही अपना क्रीड़ा-विहार और मनोरंजन मानते हैं। इसलिए आपको चिंता नहीं करनी चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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