श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 45: सीता के मार्मिक वचनों से प्रेरित होकर लक्ष्मण का श्रीराम के पास जाना  »  श्लोक 11-13
 
 
श्लोक  3.45.11-13 
 
 
देवि देवमनुष्येषु गन्धर्वेषु पतत्रिषु॥ ११॥
राक्षसेषु पिशाचेषु किन्नरेषु मृगेषु च।
दानवेषु च घोरेषु न स विद्येत शोभने॥ १२॥
यो रामं प्रतियुध्येत समरे वासवोपमम्।
अवध्य: समरे रामो नैवं त्वं वक्तुमर्हसि॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  देवी! सुन्दरी! देवताओं, मनुष्यों, गन्धर्वों, पक्षियों, राक्षसों, पिशाचों, किन्नरों, मृगों और भयानक दानवों में भी ऐसा कोई वीर नहीं है, जो युद्ध के मैदान में इन्द्र के समान पराक्रमी श्री राम का सामना कर सके। भगवान श्री राम युद्ध में अजेय हैं, इसलिए आपको ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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