दर्शनादर्शनेनैव सोऽपाकर्षत राघवम्।
स दूरमाश्रमस्यास्य मारीचो मृगतां गत:॥ ८॥
अनुवाद
इस प्रकार श्रीरघुनाथजी को दिखाई देकर और छिपाकर मारीच उन्हें उनके आश्रम से बहुत दूर ले गया। मारीच मृग का रूप धारण कर श्रीरघुनाथजी को दूर तक ले गया और अंततः उनके आश्रम से बहुत दूर ले गया।