श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 44: श्रीराम के द्वारा मारीच का वध और उसके द्वारा सीता और लक्ष्मण के पुकारने का शब्द सुनकर श्रीराम की चिन्ता  »  श्लोक 4-7
 
 
श्लोक  3.44.4-7 
 
 
बद्धासिर्धनुरादाय प्रदुद्राव यतो मृग:।
तं स्म पश्यति रूपेण द्योतयन्तमिवाग्रत:॥ ४॥
अवेक्ष्यावेक्ष्य धावन्तं धनुष्पाणिर्महावने।
अतिवृत्तमिवोत्पाताल्लोभयानं कदाचन॥ ५॥
शङ्कितं तु समुद्‍भ्रान्तमुत्पतन्तमिवाम्बरम्।
दृश्यमानमदृश्यं च वनोद्देशेषु केषुचित्॥ ६॥
छिन्नाभ्रैरिव संवीतं शारदं चन्द्रमण्डलम्।
मुहूर्तादेव ददृशे मुहुर्दूरात् प्रकाशते॥ ७॥
 
 
अनुवाद
 
  तब श्रीराम ने तलवार और धनुष धारण किया और उस मृग की ओर दौड़े। धनुर्धर श्रीराम ने देखा कि वह मृग अपने रूप से सामने की दिशा को प्रकाशित कर रहा था। उस महान वन में वह पीछे की ओर देख-देखकर आगे की ओर भाग रहा था। कभी छलांगें मारकर बहुत दूर निकल जाता और कभी इतना निकट दिखायी देता कि हाथ से पकड़ लेने का लोभ पैदा कर देता था। कभी डरा हुआ, कभी घबराया हुआ और कभी आकाश में उछलता हुआ दीख पड़ता था। कभी वन के किन्हीं स्थानों में छिपकर अदृश्य हो जाता था, मानो शरद ऋतु का चन्द्रमा मेघखंडों से आवृत हो गया हो। एक ही मुहूर्त में वह निकट दिखायी देता और पुनः बहुत दूर के स्थान चमक उठता था।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.