तब श्रीराम ने तलवार और धनुष धारण किया और उस मृग की ओर दौड़े। धनुर्धर श्रीराम ने देखा कि वह मृग अपने रूप से सामने की दिशा को प्रकाशित कर रहा था। उस महान वन में वह पीछे की ओर देख-देखकर आगे की ओर भाग रहा था। कभी छलांगें मारकर बहुत दूर निकल जाता और कभी इतना निकट दिखायी देता कि हाथ से पकड़ लेने का लोभ पैदा कर देता था। कभी डरा हुआ, कभी घबराया हुआ और कभी आकाश में उछलता हुआ दीख पड़ता था। कभी वन के किन्हीं स्थानों में छिपकर अदृश्य हो जाता था, मानो शरद ऋतु का चन्द्रमा मेघखंडों से आवृत हो गया हो। एक ही मुहूर्त में वह निकट दिखायी देता और पुनः बहुत दूर के स्थान चमक उठता था।