श्रीराम ने उस अनोखे मृग का वध करके तपस्वी के भोजन हेतु फल-मूल आदि लेकर तुरंत ही जनस्थान के पास स्थित पंचवटी में स्थित अपने आश्रम की ओर बड़ी जल्दी से प्रस्थान किया।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे चतुश्चत्वारिंश: सर्ग: ॥ ४ ४॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें चौवालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ४ ४॥