श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 44: श्रीराम के द्वारा मारीच का वध और उसके द्वारा सीता और लक्ष्मण के पुकारने का शब्द सुनकर श्रीराम की चिन्ता  »  श्लोक 21-22
 
 
श्लोक  3.44.21-22 
 
 
चक्रे स सुमहाकायं मारीचो जीवितं त्यजन्।
तं दृष्ट्वा पतितं भूमौ राक्षसं भीमदर्शनम्॥ २१॥
रामो रुधिरसिक्ताङ्गं चेष्टमानं महीतले।
जगाम मनसा सीतां लक्ष्मणस्य वच: स्मरन्॥ २२॥
 
 
अनुवाद
 
  जब मारीच ने प्राण त्यागे तो अपने शरीर को बहुत विशाल कर लिया था। भूमि पर गिरकर खून में लथपथ उस भयानक राक्षस को तड़पते हुए देखकर श्रीराम को लक्ष्मण की कही हुई बात याद आ गई और वे मन ही-मन सीता के बारे में चिंतित हो गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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