श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 44: श्रीराम के द्वारा मारीच का वध और उसके द्वारा सीता और लक्ष्मण के पुकारने का शब्द सुनकर श्रीराम की चिन्ता  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  3.44.20 
 
 
तेन मर्मणि निर्विद्धं शरेणानुपमेन हि।
मृगरूपं तु तत् त्यक्त्वा राक्षसं रूपमास्थित:॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीराम के अनुपम बाण से उसका प्राणपीड़ा करने वाला मर्म स्थान विदीर्ण हो गया था। अतः वह राक्षस ने अपने मृगरूप को त्यागकर राक्षसरूप धारण कर लिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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