श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 44: श्रीराम के द्वारा मारीच का वध और उसके द्वारा सीता और लक्ष्मण के पुकारने का शब्द सुनकर श्रीराम की चिन्ता  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  3.44.2 
 
 
ततस्त्रिविनतं चापमादायात्मविभूषणम्।
आबध्य च कपालौ द्वौ जगामोदग्रविक्रम:॥ २॥
 
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात् उस वीर बालक रघुनाथजी ने अपने वेषभूषण रूपी धनुष को झुका हुआ हाथ में लिया, और पीठ पर दो तरकस बाँधे वहाँ से प्रस्थान किया।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.