श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 44: श्रीराम के द्वारा मारीच का वध और उसके द्वारा सीता और लक्ष्मण के पुकारने का शब्द सुनकर श्रीराम की चिन्ता  »  श्लोक 13-15h
 
 
श्लोक  3.44.13-15h 
 
 
भूयस्तु शरमुद‍्धृत्य कुपितस्तत्र राघव:।
सूर्यरश्मिप्रतीकाशं ज्वलन्तमरिमर्दनम्॥ १३॥
संधाय सुदृढे चापे विकृष्य बलवद‍्बली।
तमेव मृगमुद्दिश्य श्वसन्तमिव पन्नगम्॥ १४॥
मुमोच ज्वलितं दीप्तमस्त्रं ब्रह्मविनिर्मितम्।
 
 
अनुवाद
 
  तब, अत्यंत क्रोध से भरे हुए शक्तिशाली राघवेन्द्र श्रीराम ने तर्से में से सूर्य की किरणों के समान तेजस्वी और दुश्मनों को मारने वाला एक प्रज्वलित बाण निकाला और उसे अपने मजबूत धनुष पर चढ़ाकर खींच लिया। ब्रह्मजी द्वारा निर्मित वह प्रज्वलित और तेजस्वी बाण फुफकारते सर्प की तरह सनसनाता हुआ सीधे उस मृग को लक्ष्य कर छोड़ा गया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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