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श्लोक 10
श्लोक
3.44.10
स तमुन्मादयामास मृगरूपो निशाचर:।
मृगै: परिवृतोऽथान्यैरदूरात् प्रत्यदृश्यत॥ १०॥
अनुवाद
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उस मृग का रूप धारण करने वाले निशाचर राक्षस ने उसे उन्मत्त कर दिया। थोड़ी देर में वह दूसरे मृगों से घिरा हुआ पास में ही दिखाई दे गया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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