श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 43: कपटमृग को देखकर लक्ष्मण का संदेह, सीता का उस मृग को ले आने के लिये श्रीराम को प्रेरित करना, लक्ष्मण को सीता की रक्षा का भार सौंप राम का मृग के लिये जाना  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  3.43.8 
 
 
मृगो ह्येवंविधो रत्नविचित्रो नास्ति राघव।
जगत्यां जगतीनाथ मायैषा हि न संशय:॥ ८॥
 
 
अनुवाद
 
  हे रघुनन्दन! हे पृथ्वीनाथ! इस धरती पर कहीं भी इस प्रकार का रत्नमय मृग नहीं है; इसलिए निःसंदेह यह माया ही है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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