श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 43: कपटमृग को देखकर लक्ष्मण का संदेह, सीता का उस मृग को ले आने के लिये श्रीराम को प्रेरित करना, लक्ष्मण को सीता की रक्षा का भार सौंप राम का मृग के लिये जाना  »  श्लोक 51
 
 
श्लोक  3.43.51 
 
 
प्रदक्षिणेनातिबलेन पक्षिणा
जटायुषा बुद्धिमता च लक्ष्मण।
भवाप्रमत्त: प्रतिगृह्य मैथिलीं
प्रतिक्षणं सर्वत एव शङ्कित:॥ ५१॥
 
 
अनुवाद
 
  लक्ष्मण! अपने आस-पास रहने वाले बुद्धिमान, बलवान और शक्तिशाली पक्षी जटायु के साथ रहो और सदा सावधान रहना। मिथिलेशकुमारी सीता को अपनी सुरक्षा में लेकर रहो और हर समय हर दिशा से राक्षसों पर नज़र रखो।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे त्रिचत्वारिंश: सर्ग: ॥ ४ ३॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें तैंतालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ४ ३॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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