श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 43: कपटमृग को देखकर लक्ष्मण का संदेह, सीता का उस मृग को ले आने के लिये श्रीराम को प्रेरित करना, लक्ष्मण को सीता की रक्षा का भार सौंप राम का मृग के लिये जाना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  3.43.5 
 
 
शङ्कमानस्तु तं दृष्ट्वा लक्ष्मणो वाक्यमब्रवीत्।
तमेवैनमहं मन्ये मारीचं राक्षसं मृगम्॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  लक्ष्मण को देखकर संदेह हुआ और उन्होंने कहा - "भाई! मुझे लगता है कि यह मृग के रूप में मारीच राक्षस ही आया है।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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