श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 43: कपटमृग को देखकर लक्ष्मण का संदेह, सीता का उस मृग को ले आने के लिये श्रीराम को प्रेरित करना, लक्ष्मण को सीता की रक्षा का भार सौंप राम का मृग के लिये जाना  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  3.43.47 
 
 
अस्यामायत्तमस्माकं यत् कृत्यं रघुनन्दन।
अहमेनं वधिष्यामि ग्रहीष्याम्यथवा मृगम्॥ ४७॥
 
 
अनुवाद
 
  रघुनन्दन ! हमलोगों का जो ज़रूरी कर्तव्य है, वो सीता जी की रक्षा करना है। मैं इस हिरण को ज़रूर मारूँगा या उसे ज़िंदा पकड़कर लाऊँगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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