श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 43: कपटमृग को देखकर लक्ष्मण का संदेह, सीता का उस मृग को ले आने के लिये श्रीराम को प्रेरित करना, लक्ष्मण को सीता की रक्षा का भार सौंप राम का मृग के लिये जाना  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  3.43.44 
 
 
त्वयाविगण्य वातापे परिभूताश्च तेजसा।
जीवलोके द्विजश्रेष्ठास्तस्मादसि जरां गत:॥ ४४॥
 
 
अनुवाद
 
  वृक्ष राक्षस वातापे ! तूने आवेश में आकर बिना सोचे-समझे जीवों के लोक में अनेक श्रेष्ठ ब्राह्मणों का तिरस्कार किया है। इसी पाप के कारण तू अब वृद्ध हो गया है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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