श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 43: कपटमृग को देखकर लक्ष्मण का संदेह, सीता का उस मृग को ले आने के लिये श्रीराम को प्रेरित करना, लक्ष्मण को सीता की रक्षा का भार सौंप राम का मृग के लिये जाना  »  श्लोक 42
 
 
श्लोक  3.43.42 
 
 
स कदाचिच्चिराल्लोभादाससाद महामुनिम्।
अगस्त्यं तेजसा युक्तं भक्ष्यस्तस्य बभूव ह॥ ४२॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘काफी समय बाद वातापि एक दिन लालच के कारण तेजस्वी महामुनि अगस्त्यजी के पास पहुँचा और (श्राद्ध काल में) उनका भोजन बन गया। वह उनके पेट में पहुँच गया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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