श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 43: कपटमृग को देखकर लक्ष्मण का संदेह, सीता का उस मृग को ले आने के लिये श्रीराम को प्रेरित करना, लक्ष्मण को सीता की रक्षा का भार सौंप राम का मृग के लिये जाना  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  3.43.37 
 
 
एष चैव मृग: श्रीमान् यश्च दिव्यो नभश्चर:।
उभावेतौ मृगौ दिव्यौ तारामृगमहीमृगौ॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
 
  यह सुंदर मृग और वह दिव्य आकाश में रहने वाला मृग (मृगशिरा नक्षत्र), ये दोनों ही दिव्य मृग हैं। इनमें से एक तारामृग है और दूसरा महीमृग है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.