न कादली न प्रियकी न प्रवेणी न चाविकी।
भवेदेतस्य सदृशी स्पर्शेऽनेनेति मे मति:॥ ३६॥
अनुवाद
कंचन मृग के छाले को छूने में ऐसी कोमलता और सुखद अनुभूति होती है जो किसी भी अन्य जानवर की त्वचा में नहीं मिल सकती। चाहे वह कदली मृग की हो, प्रियक मृग की हो, प्रवेण बकरी की हो या फिर अवि भेड़ की ही क्यों न हो। मेरा मानना है कि इनमें से किसी की भी त्वचा कंचन मृग के छाले के समान कोमल और सुखद नहीं हो सकती।