श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 43: कपटमृग को देखकर लक्ष्मण का संदेह, सीता का उस मृग को ले आने के लिये श्रीराम को प्रेरित करना, लक्ष्मण को सीता की रक्षा का भार सौंप राम का मृग के लिये जाना  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  3.43.36 
 
 
न कादली न प्रियकी न प्रवेणी न चाविकी।
भवेदेतस्य सदृशी स्पर्शेऽनेनेति मे मति:॥ ३६॥
 
 
अनुवाद
 
  कंचन मृग के छाले को छूने में ऐसी कोमलता और सुखद अनुभूति होती है जो किसी भी अन्य जानवर की त्वचा में नहीं मिल सकती। चाहे वह कदली मृग की हो, प्रियक मृग की हो, प्रवेण बकरी की हो या फिर अवि भेड़ की ही क्यों न हो। मेरा मानना है कि इनमें से किसी की भी त्वचा कंचन मृग के छाले के समान कोमल और सुखद नहीं हो सकती।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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