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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 43: कपटमृग को देखकर लक्ष्मण का संदेह, सीता का उस मृग को ले आने के लिये श्रीराम को प्रेरित करना, लक्ष्मण को सीता की रक्षा का भार सौंप राम का मृग के लिये जाना
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श्लोक 35
श्लोक
3.43.35
एतस्य मृगरत्नस्य परार्घ्ये काञ्चनत्वचि।
उपवेक्ष्यति वैदेही मया सह सुमध्यमा॥ ३५॥
अनुवाद
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इस रत्नस्वरूप श्रेष्ठ मृग की चमड़ा स्वर्ण के समान चमकती हुई है। उसके ऊपर सीता मेरे साथ विराजेंगी। उनकी सुंदर काया सर्वदा हमारे मन को प्रसन्न रखेगी।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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