श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 43: कपटमृग को देखकर लक्ष्मण का संदेह, सीता का उस मृग को ले आने के लिये श्रीराम को प्रेरित करना, लक्ष्मण को सीता की रक्षा का भार सौंप राम का मृग के लिये जाना  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  3.43.34 
 
 
अर्थी येनार्थकृत्येन संव्रजत्यविचारयन्।
तमर्थमर्थशास्त्रज्ञा: प्राहुरर्थ्या: सुलक्ष्मण॥ ३४॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘लक्ष्मण! अर्थी मनुष्य जिस अर्थ (प्रयोजन) का सम्पादन करनेके लिये उसके प्रति आकृष्ट हो बिना विचारे ही चल देता है, उस अत्यन्त आवश्यक प्रयोजनको ही अर्थसाधनमें चतुर एवं अर्थशास्त्रके ज्ञाता विद्वान् ‘अर्थ’ कहते हैं॥ ३४॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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