श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 43: कपटमृग को देखकर लक्ष्मण का संदेह, सीता का उस मृग को ले आने के लिये श्रीराम को प्रेरित करना, लक्ष्मण को सीता की रक्षा का भार सौंप राम का मृग के लिये जाना  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  3.43.29 
 
 
मसारगल्वर्कमुख: शङ्खमुक्तानिभोदर:।
कस्य नामानिरूप्योऽसौ न मनो लोभयेन्मृग:॥ २९॥
 
 
अनुवाद
 
  मुँह का भाग इन्द्रनील मणि के चषक के जैसा है। पेट शंखचूड़ के समान सफेद है। ऐसा अवर्णनीय मृग किसे आकर्षित नहीं करेगा?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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