श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 43: कपटमृग को देखकर लक्ष्मण का संदेह, सीता का उस मृग को ले आने के लिये श्रीराम को प्रेरित करना, लक्ष्मण को सीता की रक्षा का भार सौंप राम का मृग के लिये जाना  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  3.43.28 
 
 
पश्यास्य जृम्भमाणस्य दीप्तामग्निशिखोपमाम्।
जिह्वां मुखान्नि:सरन्तीं मेघादिव शतह्रदाम्॥ २८॥
 
 
अनुवाद
 
  देखो, जब वह जंभाई लेता है, तब उसके मुंह से अग्निशिखा के समान चमकती हुई लंबी जीभ बाहर निकलती है, जो बादलों से निकलती बिजली की तरह चमकती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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