न वने नन्दनोद्देशे न चैत्ररथसंश्रये।
कुत: पृथिव्यां सौमित्रे योऽस्य कश्चित् समो मृग:॥ २६॥
अनुवाद
सुमित्रानंदन! देवराज इंद्र के नंदनवन और कुबेर के चैत्ररथवन में भी ऐसा कोई मृग नहीं होगा, जो इस मृग की बराबरी कर सके। फिर पृथ्वी पर तो पाया ही नहीं जा सकता।