श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 43: कपटमृग को देखकर लक्ष्मण का संदेह, सीता का उस मृग को ले आने के लिये श्रीराम को प्रेरित करना, लक्ष्मण को सीता की रक्षा का भार सौंप राम का मृग के लिये जाना  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  3.43.26 
 
 
न वने नन्दनोद्देशे न चैत्ररथसंश्रये।
कुत: पृथिव्यां सौमित्रे योऽस्य कश्चित् समो मृग:॥ २६॥
 
 
अनुवाद
 
  सुमित्रानंदन! देवराज इंद्र के नंदनवन और कुबेर के चैत्ररथवन में भी ऐसा कोई मृग नहीं होगा, जो इस मृग की बराबरी कर सके। फिर पृथ्वी पर तो पाया ही नहीं जा सकता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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