श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 43: कपटमृग को देखकर लक्ष्मण का संदेह, सीता का उस मृग को ले आने के लिये श्रीराम को प्रेरित करना, लक्ष्मण को सीता की रक्षा का भार सौंप राम का मृग के लिये जाना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  3.43.25 
 
 
पश्य लक्ष्मण वैदेह्या: स्पृहामुल्लसितामिमाम्।
रूपश्रेष्ठतया ह्येष मृगोऽद्य न भविष्यति॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  देखो लक्ष्मण! विदेह नन्दिनी सीता के मन में इस मृग का सुन्दर रूप देखकर कितनी प्रबल इच्छा जागी है? मृग के इस रूप की श्रेष्ठता ही उसकी मृत्यु का कारण बनने वाली है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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